Sugarcane was grown in fertile irrigated lands and processed in the villages to make jaggery - gur or mithai, the solid type, and raab, the liquidy type. The sugarcane juice was pressed in bull-operated kolhu, and boiled in iron vessels. Not only was jaggery affordable and easily available, the byproducts of the process were freely distributed. Villagers would warm themselves by the cooking flames in winter, and drink dhovan, the hot water used to wash the jaggery vessels (and thereby sweetened). As jaggery cultivation expanded in the region, due to land improvements and irrigation, jaggery production in villages expanded for a few years. But this village industry was decimated with the opening of nearby sugar mills. Sugarcane farmers received a substantially better price for their cane from the mills, and sugarcane was transported directly from the farms to the mills. Jaggery production resumed, but was now machine-powered and set up outside villages (or near mills where they could buy farmers' excess cane). With the easy availability of white sugar, jaggery consumption has plummeted and an iron-rich sweetener has disappeared from diets.
उपजाऊ और सिंचित भूमि जैसे तराई क्षेत्र में गन्ना उगाया जाता था। नवम्बर में गन्ने की कटाई के बाद, सर्दियों के मौसम में, तराई के गाँव-गाँव में बैल चालित कोल्हू से गन्ने का रस निकलता था। इस रस को उबालकर राब (तरल गुड़) या गुड़ बनाया जाता था, जिसका साल भर लोग सेवन करते थे। गुड़ को अवध में मिठाई भी कहते हैं। गुड़ आस-पास के गांवों और कस्बों में बेचा जाता था। गन्ने के रस को उबालने में कढ़ाई के ऊपर तैरता मैल निकलता था जिसे ‘पतोई’ कहते थे। यह बैलों को खिलाते थे जिससे उन्हें गरमाई मिले। गुड़ की खाली कढ़ाई की सफाई करते हुए जो पानी इस्तेमाल होता उसे ‘धोवन’ कहते थे, और वो मुफ्त में गरीब परिवारों को दे दिया जाता था। लोग दिन रात, गुड़ बेल की जलती भट्ठी/बगास के पास गर्माहट लेते थे । पहले गाँव में बैलों के जरिए कोल्हू में गन्ने का रस निकलता था, और गाँव के लोगों को राब, गुड़, पतोई, धोवन जैसे कई पदार्थ मिलते थे। अब हाइवे पर बिजली चालित मशीनों से गन्ने का रस निकलता है और पतोई, धोवन सब फेंक दिया जाता है। अफसोस की बात यह है कि अब गुड़ भी खाने के बजाय शराब बनाने के काम आता है। यह गाँव-गाँव में कुटीर उद्योग बन गया है। जो गुड़ हमारी सेहत के लिए इतना लाभदायक था, और जो मीठे स्वाद के साथ आइरन और मिनरल्स देता था, अब वो खाने से दुर्लभ हो गया है। इसका स्थान सस्ती और आसानी से मिलने वाली सफेद चीनी ने ले लिया है। समतलीकरण और मेड़बंदी करने से, सिंचाई के साधनों के बढ़ने से गन्ने का रकबा बढ़ा, जिससे गुड़ का उत्पादन भी बढ़ा। लेकिन 1990 के दशक में अवध में कई चीनी मिलें खुल गई (सरकारी सब्सिडी के साथ) जिससे गाँव में गुड़ बेलों को गन्ना मिलने में कठिनाई आने लगी। चीनी मिलें, गन्ने को ज्यादा भाव में खरीदती थीं (यह भाव सरकार द्वारा घोषित किया जाता है), और गाँव के गुड़ बेल धीरे धीरे बंद होने लगे। देखते ही देखते गन्ने का उत्पादन इतना ज्यादा बढ़ गया कि कुछ व्यापारियों ने चीनी मिलों के रास्तों में गुड़ बेलें बना लीं ताकि जो गन्ना, मिलें नहीं खरीद पा रही हों वो गुड़ बेलों पर बिक जाए।
Caste: सभी
Geography: सभी
Caste: सभी
Geography: उपजाऊ भूमि
"गन्ना, उपजाऊ भूमि के छोटे टुकड़ों में या नदियों के पास तराई भूमि में उगाया जाता था।"
Caste: सभी
Geography: नहर कमान क्षेत्र
"यहां बहुत पहले नहर का पानी आया था। हमारे कुछ पुर्वज नहर खोदने का काम करते थे। जब यह आया, तो हमारे परिवार गेहूँ की फसल से गन्ने की खेती की तरफ स्थानांतरित हो गए।"
Caste: सवर्ण
Geography: उपजाऊ भूमि
"गुड़ हरदोई व मिश्रीख बिकने के लिए भेजा था।"
Caste: सभी
Geography: सभी
"चने को उबाल कर, पिस कर और गुड़ में मिलाकर भेली की मिठाई बनाई जाती है।"
Caste: दलित/ ओबीसी
Geography: सभी
"बेर को सर्दियों में एकत्र कर सुखाया जाता था। बाद में इन्हें गुड़ के साथ उबाल कर रोटी के साथ खाया जाता था।"
Caste: ओबीसी
Geography: सभी
"मैं एक बाल्टी राब शरबत पीकर, 10 बीघा जोतूंगा। राब और गुङ हमें ताकत देती है।"
Caste: सभी
Geography: सभी
"मूंग को भून कर गुड़ के साथ पीस कर कतली की मिठाई बनाई जाती थी।"
Caste: सभी
Geography: सभी
"गुड़ खाने में कोई समस्या नहीं थी - यह अच्छा नहीं दिखती थी। चीनी(शक्कर) बेहतर लगती है।"
Caste: सभी
Geography: नहर कमान क्षेत्र
"हमारे पास मिठाई (गुड़) से भरा एक कमरा था। हम इसे महीनों तक स्टॉक करते थे। जरूरत पड़ने पर हम इसे बेच देते थे।"
Caste: सभी
Geography: सभी
"सर्दियों में लोग कोल्हू के आसपास इकट्ठा होते थे, गर्म रहने के लिए। वे गुड़ बनाने की प्रक्रिया से उप-उत्पादों,धोवन सहित --- गर्म पानी जो पैन को धोने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, का इस्तेमाल करते थे । इसके प्रसंस्करण के दौरान बच्चों को नियमित रूप से खाने के लिए गुड़ मिल जाता था।"
Caste: दलित
Geography: सभी
"हम मट्ठा के साथ गुड़ शरबत को मिला कर शिकाना बनाते और पीते थे।"
Caste: सभी
Geography: सभी
"रोटी गुड़ के साथ खाते थे।"
Caste: दलित
Geography: सभी
"दोपहरी में, हमारे पास सभी दिन केवल राब की शरबत पीने के लिए थी।"
Caste: सभी
Geography: नहर कमान क्षेत्र
"गांव में गुड़ बनाने के लिए कई कोल्हू थे"
Caste: दलित
Geography: सभी
"कभी-कभी, मजदूरों को अपने खेतों में काम करने पर जमींदारों से केवल राब, गुड़ या मट्ठा ही मिलता था।"
Caste: दलित
Geography: सभी
"हम कच्चे आम को गुड़ के सिरके में भिगोकर गिली खटाई बनाते थे।"
Caste: सवर्ण
Geography: उपजाऊ भूमि
"1997 में, रामगढ़ चीनी मिल ने 20 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ना खरीदना शुरू किया।"
Caste: ओबीसी
Geography: मिश्रित मिट्टी
"पहले, हम केवल अपनी जरूरतों के लिए, खाने के लिए और गुड़ के लिए थोड़ा सा गन्ना उगाते थे। या हम तराई से गुड़ खरीदते थे।"
Caste: दलित
Geography: सभी
"गन्ने के रस (गन्ने की पटोई) के ऊपर की धूल की परत को आमतौर पर साफ करके फेंक दिया जाता है। लेकिन हम औरतें उसे भी पीते थे।"
Caste: दलित
Geography: रेतीली मिट्टी
"हमारे गांव में रेतीली मिट्टी है और गन्ना कम था। हमारे यहाँ सिर्फ 1 कोल्हू था।"
Caste: सवर्ण
Geography: उपजाऊ भूमि
"रामगढ़ मिल से मुझे जो पहला चेक मिला वह 1,25,000 रुपये का था। मैंने एक बार में इतना पैसा कभी नहीं देखा था।"
Caste: सभी
Geography: सभी
"रामगढ़ मिल खुलने के बाद उत्पादन बढ़ा और जवाहरपुर मिल खुलने के बाद ओर भी ज्यादा हो गया।"
Caste: सभी
Geography: सभी
"2000 के दशक में गांव में गुड़ और राब का उत्पादन बंद हो गया, जब गन्ना खरीदने के लिए यहां थ्रेसर आने लगे। वे मिल का आधा रेट देंते हैं, लेकिन नकद भुगतान करते हैं।"
Caste: सभी
Geography: सभी
"पहले गांवों में स्थानीय खपत के लिए गुड़ बनाया जाता था। अब, गाँवों के बाहर (अक्सर मिलों के पास) गुड़ बनाने की अलग-अलग इकाइयाँ हैं। वे मिलों से या उन किसानों से गन्ना खरीदते हैं जो मिलों को कम दर पर बेचने में सक्षम नहीं हैं।"
Caste: सभी
Geography: सभी
"अब गुड़ खाने के लिए नहीं पीने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। लोग घर पर शराब बनाने के लिए गुड़ खरीदते हैं।"
Caste: सभी
Geography: सभी
"गन्ना अब हर जगह उगाया जाता है - आपको केवल सिंचाई की जरूरत है।"
Caste: सभी
Geography: सभी
"अब, अगर हमें मिल से परचा नहीं मिलता है, तो हम कटाई नहीं करते हैं। खेतों में गन्ना सूख जाता है।"
Caste: सभी
Geography: सभी
गन्ने से जुड़े स्थानीय नाम उस फसल से प्राप्त होते हैं जो बोने से तुरंत पहले होती है, केवल चौथे उदाहरण को छोड़कर, जिसमें यह नियम लागू नहीं होता है। ये निम्न हैं- १. चरराई, जहां खेत में बोया गया हो जिससे चरा काटा गया हो। 2. मसेरी, जहां माश की फसल के बाद बोया जाता है। 3. धनकुरी, जहां यह धान की फसल का अनुसरण करता है। ४. पुरेली, या पुरेल, जहां खरीफ की फसल नहीं हुई है, वह भूमि पूरे बारिश के दौरान गन्ने के लिए जुताई के अधीन रही है।
आजादी के बाद के दशक में शारदा नहर का विस्तार किया गया और नहर का पानी इस क्षेत्र के गांवों तक पहुंचा। नहर के किनारे के किसान, जो ज्यादातर सवर्ण या पिछड़े जातियों से थे, सिंचित खेतों में बाजरा, दलहन और तिलहन की मिश्रित फसलों की जगह धान, गेहूं और गन्ने की फसलों को अपनाया।
1970 के बाद, सादातनगर लघु नहर का विस्तार किया गया और पानी अंबरपुरवा जैसे गांवों तक पहुँचा। विस्तार के साथ किसान, मुख्य रूप से पिछड़े और कुछ दलित, मिश्रित फसलों को छोड़कर रबी में गेहूं, गन्ना और मटर उगाने लगे। चूंकि यहा की मिट्टी बलूई थी और मानसून में नहर का पानी उपलब्ध नहीं था, धान की खेती नहीं की जाती थी और उस समय मिश्रित फसल बोतो रहे।
जैसे ही उन्नत गेहूं के बीज के साथ-साथ यूरिया, डीएपी और कीटनाशकों की आपूर्ति रियायती दरों पर की जाने लगी, अमीर किसानों ने 'आधुनिक' तकनीकों को अपनाना शुरू कर दिया और मिश्रित फसल से गेहूं, रोपित धान और गन्ना की ओर रुख किया।
1980 में, सूखे के दौरान, श्रवणपुर में ब्राह्मण किसानों ने डीजल से चलने वाले बोरवेल लगाए। उनकी सफलता ने दूसरों को बोरवेल लगाने, और मिश्रित फसलों से धान, गेहूं और गन्ने की रोपाई करने के लिए प्रेरित किया।
निजी बोरवेल का और विस्तार हुआ। लक्ष्मणपुर में, कुछ यादव किसानों ने 1980 के दशक में बोरवेल लगाए थे, लेकिन पानी नहीं निकला। 1990 में, अधिक किसानों ने कोशिश की और कुछ सफल हुए। उन्होंने रोपित धान और गन्ना उगाना शुरू किया।
गन्ना चीनी मिलों को बेचे जाने के कारण गाँवों के भीतर गुड़ बनाने वाली इकाइयाँ बंद होने लगीं।
1990 के दशक में, उत्तर प्रदेश राज्य में सत्ता परिवर्तन से चीनी उत्पादन के वित्तपोषण में नए सिरे से रुचि पैदा हुई। इस समय तक, इस क्षेत्र की निकटतम चीनी मिल महोली (1932 में खोली गई) में थी, और केवल बड़े किसान ही अपना गन्ना वहाँ ले जा सकते थे। 1990 के दशक की शुरुआत में यह मिल बंद हो गई और इसके तुरंत बाद, डालमिया कंपनी ने रामगढ़ में एक चीनी मिल खोली। यह बड़े, मध्यम और यहां तक कि छोटे किसानों द्वारा अधिक आसानी से सुलभ था। मिल ने गन्ने की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक विस्तार कार्यक्रम भी शुरू किया।
इस क्षेत्र में प्लास्टिक पाइप, जिनका उपयोग सिंचाई के पानी को एक किलोमीटर तक दूर ले जाने के लिए किया जा सकता था, का उपयोग किया जाने लगा। इसने छोटे और सीमांत किसानों के खेतों तक पानी पहुँचा, जिसके परिणामस्वरूप फसल का परिवर्तन और गन्ने की ओर रूख हुआ।
डालमिया कंपनी ने इस क्षेत्र में एक और चीनी मिल खोली, जिससे गन्ने की खेती को बढ़ावा मिला।
2010 के दशक के बाद से, गौ रक्षण के कारण आवारा पशुओं में भारी वृद्धि हुई है। ये मवेशी खाद्य फसलों के लिए एक बड़ा खतरा हैं, लेकिन गन्ने के लिए कम, खासकर पहले 2-3 महीनों के बाद जब गन्ना मोटा हो जाता है। इसने छोटे और सीमांत किसानों को गन्ने की खेती की ओर बढ़ाया है।
Caste: Dalit
Geography: Canal command area
A story of jaggery: new sugar mills that were set up in the 1990s and 2000s in western Avadh led to a transformation in the processing and consumption of jaggery. In this video, a farming couple from a village by the Sharada canal, where sugarcane has been cultivated for decades, describe the changes they have experienced and observed in jaggery use.
Caste: All
Geography: Fertile lands
"Sugarcane was grown in small patches of fertile land or in the terai lands near the rivers"
Caste: All
Geography: Canal command area
"The canal water came here long ago. Some of our grandfathers worked to dig the canal. Once it came, our families shifted to wheat and sugarcane"
Caste: Savarna
Geography: Fertile lands
"Gur was sent to Hardoi, Mishrikh to be sold"
Caste: All
Geography: All
"Chana was boiled, ground and mixed with Gur to make bheli, a sweet"
Caste: Dalit, OBC
Geography: All
"Ber were collected in winter and dried. Later, they were boiled with Gur and eaten with roti"
Caste: OBC
Geography: All
"I would consume a bucketful of raab Sharbat and plough 10 bighas. Raab and Gur gave us strength"
Caste: All
Geography: All
"Moong was roasted and ground with Gur to make kathli, a sweet"
Caste: All
Geography: All
"There was no problem in eating black jaggery – it just didn't look good. Sugar looked better"
Caste: All
Geography: Canal command area
"We had a room filled with mithai (gur). We would stock it for months. When needed, we would sell it"
Caste: All
Geography: All
"In winters, people would congregate around the kolhu to keep warm. They would consume the byproducts from the jaggery making process, including dhovan, the hot water that was used to wash the pans. Children would regularly get jaggery to eat during its processing."
Caste: Dalit
Geography: All
"We made and drank shikanna – Gur Sharbat mixed with mattha"
Caste: All
Geography: All
"Roti was eaten with gur"
Caste: Dalit
Geography: All
"In lean times, We had only raab ki Sharbat to drink all day"
Caste: All
Geography: Canal command area
"There were many kolhu for making Gur in the village"
Caste: Dalit
Geography: All
"Sometimes, the workers would get only raab, Gur or mattha from the landowners when working in their fields"
Caste: Dalit
Geography: All
"We made geeli khatai by soaking raw mangoes and Gur in vinegar"
Caste: Dalit, OBC
Geography: All
"Pidva was made by roasting and grinding pearl millet, dry ginger, groundnut and sesame, mixing it with jaggery and rolling it into balls. The ingredients for pidva were roasted for 2 days at a stretch. Those who were making more got it roasted by a bhurji. Pidva could be stored for months"
Caste: Savarna
Geography: Fertile lands
"In 1997, Ramgarh sugar mill began buying sugarcane at the rate of Rs. 20 per quintal"
Caste: OBC
Geography: All
"Earlier, we only grew a little sugarcane for our needs, to eat and for gur. Or we bought Gur from the terai."
Caste: Dalit
Geography: All
"The dusty layer on top of sugarcane juice (ganne ki patoi) is usually decanted and thrown away. But we women would drink that also"
Caste: Dalit
Geography: Sandy soil
"Our village has sandy soil and there was less sugarcane. We had just 1 kolhu here"
Caste: Savarna
Geography: Fertile lands
"The first cheque I got from the Ramgarh mill was for Rs. 1,25,000. I had never seen so much money at one time"
Caste: All
Geography: All
"After Ramgarh mill opened, production increased and even more after Jawaharpur mill opened"
Caste: All
Geography: All
"Production of Gur and raab in the village stopped in the 2000s, when threshers started coming here to purchase sugarcane. They would give half rate of the mill, but make cash payments"
Caste: All
Geography: All
"Earlier, jaggery was made in the villages for local consumption. Now, there are separate jaggery making units outside villages (often near mills). They buy sugarcane from the mills or from farmers who weren't able to sell to the mills at a reduced rate"
Caste: All
Geography: All
"Now, Gur is being used not for eating but for drinking. People buy Gur to brew alcohol at home"
Caste: All
Geography: All
"Sugarcane is grown everywhere now – all you need is irrigation"
Caste: All
Geography: All
"Now, if we don't get a parcha from the mill, we don't harvest. The sugarcane dries up in the fields"
Caste: All
Geography: All
Caste: All
Geography: All
Agriculture data for Sitapur district obtained from Uttar Pradesh Department of Agriculture
Caste: All
Geography: All
From: Ferrar, M. L. (1875). The Regular Settlement and Revised Assessment of the District of Sitapur
The Sharda canal was expanded in the decade after independence, and canal waters reached villages in this region. Farmers along the canal, mainly from dominant castes or the richer OBCs/Dalits, switched from mixed crops of millets, pulses and oilseeds to paddy, wheat and sugarcane in the irrigated fields
Canal irrigation further extended
After 1970, the Saadatnagar minor canal was extended and reached villages such as Ambarpurva. Farmers along the extension, mainly OBCs and some Dalits, switched from mixed crops to wheat, sugarcane and peas (matar) in the winter crop. As these soils were sandy and canal water wasn't available in the monsoon, paddy was not cultivated
Improved seeds and chemical inputs
As improved wheat seeds as well as Urea, DAP and pesticides began to be supplied at subsidized rates, rich farmers began adopting 'modern' techniques and switched from mixed cropping to wheat, transplanted paddy and sugarcane
In 1980, during the drought, Brahmin farmers in Sharvanpur installed diesel-operated borewells. Their success drove others to install borewells, and switch from mixed crops to transplanted paddy, wheat and sugarcane
Private borewells expanded further. In Lakshmanpur, some Yadav farmers had installed borewells in the 1980s but didn't hit water. In 1990, more farmers tried and some were successful. They began growing transplanted paddy and sugarcane
Closure of 'kolhu' in villages
Bull-powered jaggery making units within villages began shutting down as sugarcane was sold to the sugar mills
In the 1990s, a change in government in Uttar Pradesh state led to a renewed interest in financing sugar production. Until this time, the nearest sugar mill in the region was in Maholi (opened in 1932), and only the big farmers could take their sugarcane there. This mill shut down in the early 1990s and soon after, the Dalmia company opened a sugar mill in Ramgarh. This was more easily accessible by big, medium and even small farmers. The mill also initiated an extension programme to promote sugarcane cultivation
Plastic pipes, which could be used to transport irrigation water up to a kilometre away, began to be used in the region. This allowed small and marginal farms to be irrigated, resulting in a transformation of cropping and a shift towards sugarcane
Opening of Jawaharpur sugar mill
The Dalmia company opened another sugar mill in the region, further incentivizing the shift to sugarcane
Since the 2010s, cow vigilantism has led to a huge increase in stray cattle. These cattle are a major threat to food crops, but less so for sugarcane, especially after the first 2-3 months. This has further pushed small and marginal farmers towards sugarcane cultivation