The abundance of water bodies in the region meant that fish were available throughout the year for the meat eating communities of Dalits, Muslims and Thakurs (a dominant caste). During the monsoon, lakes and wetlands overflowed and fish could be caught easily. There were no restrictions on fishing, and some Paasis (a Dalit caste) fished as an occupation - nets were a common sight in some villages into the early 2000s. Fish were sold at affordable rates in the village or kasbah markets, and were purchased by families across the socio-economic strata. Depending on the season, different types of fish were available, from bhur to seengh and rohu. Fish were crucial for food and nutritional security, especially in times of scarcity. The construction of drainage channels alongside the Sharada canal in the 1930s had begun the process of draining wetlands and converting them into fields. This process sped up in the 1970s and 80s in the wake of the Green Revolution. Fishing rights to the remaining lakes began to be restricted and sold as contracts. Fishing in rivers was still allowed, but low water levels reduced the availability of fish. As a result, market prices shot up, and poor families could no longer afford to buy fish. Now, from consuming fish every other day, they have transitioned to eating fish occasionally.





पश्चिमी अवध के नदी, नाले, झील, तालाब, झाबर (आर्द्रभूमि, वेट्लैन्ड) में मछली हर मौसम में मिलती थी, जो मांसाहारी समुदायों जैसे दलित, मुसलमान, ठाकुर (सवर्ण) और अन्य कई जातियों के लिए भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा थीं। भूर, सींग, रोहू जैसी कई मछलियाँ अलग अलग मौसम में मिलती थीं, और बारिश में मछली आसानी से पकड़ी जाती थी। मछली पकड़ने पर कोई प्रतिबंध नहीं था। पासी जाति के लोग (दलित समुदाय) बीस साल पहले तक जाल बिछाए मछली पकड़ते हुए नजर आते थे। गाँव और कस्बों के बाजार में मछली आसानी से मिल जाती थी, जिसे सवर्ण और दलित सभी खरीदते थे। कुंवार के समय जब गरीब परिवारों में अनाज ख़त्म हो जाता तब छूढ़ी मछली (बिना अन्न/अनाज के सिर्फ मछली) से पेट भरता और पोषण भी मिलता। 1928 में शारदा नहर बनने से, और पानी खेतों में भर जाने से, ड्रेनेज चैनल बनाने की जरूरत पड़ी (खेतों से पानी के निकास के लिए)। साथ ही झील झाबर से पानी निकालने की योजनाएं बनी, जो आजादी के बाद, हरित क्रांति के अंतर्गत 1970-80 के दशक में और जोर-शोर से लागू होने लगीं। पानी निकालकर झाबर की जमीन को खेतों में बदला गया। बचे हुए तालाबों में मछली पकड़ने का अधिकार, आम जनता से लेकर पंचायतों के फंड के लिए निजी तौर पर बिकने लगा। यह भी स्थापित किया गया कि कहार बिरादरी को इससे रोजगार मिल पायेगा। नदियों में मछली पकड़ने पर रोक-टोक नहीं थी, पर बांध बनाने से नदियों में पानी का बहाव बहुत कम हो गया था। धीरे धीरे मछलियाँ लुप्त होने लगीं और बाजार में महंगी बिकने लगी। कहाँ हफ्ते में कई बार मछली खाने वाले गरीब परिवार, अब ना तो मछली पकड़ सकते हैं, और ना ही खरीद कर खा सकते हैं।





जानकारी कार्ड


जाति:
क्षेत्र/मिट्टी:
मौसम:


Caste: सभी

Geography: जल स्त्रोत

Caste: दलित

Geography: जल स्त्रोत

"चैत और बैसाख (गर्मी के महीनों) में मछलियाँ अधिक मात्रा में मिलती थीं। जब वे ऊपर आते थे, तो उन्हें डंडों से मार कर इकट्ठा किया जाता और फिर पकाया जाता।"

Caste: दलित

Geography: जल स्त्रोत

"मानसून में, जब पानी अधिक हो जाता था और निचले इलाकों में भर जाता था, तो हम वहाँ भी मछलियाँ पकड़ लेते थे।"

Caste: दलित

Geography: जल स्त्रोत

"मछली, साल भर तालाबों या नदियों में उपलब्ध रहती थी।"

Caste: दलित

Geography: नदी के किनारे

"मछलियां पास की नदी में पकड़ी जाती थीं, और हर 2-3 दिन में एक बार पकती थीं।"

Caste: दलित

Geography: जल स्त्रोत

"मछलियाँ बहुतायत में थीं - जो मछली पकड़ने में माहिर होते थे, वे अधिक खाते थे, बाकी कम।"

Caste: दलित

Geography: जल स्त्रोत

"हम 'छूढ़ी मछली' खाते थे - कभी-कभी जब हमारे पास अनाज वगैरह नहीें होता था, तब हम केवल मछली खाकर पेट भर लेते थे।"

Caste: दलित, गरीब मुसलमान

Geography: जल स्त्रोत

"पूस (जनवरी) के महीने में अनाज कम होता था, इसलिए हम रोज मछली खाते थे"

Caste: सभी

Geography: सभी

"हमने कई प्रकार की मछलियाँ खाईं - सींग, भाम, मंगूर, भूर, छंगा, रोहू, टंगना, मुदार, पटवा, कटना, पडिनी, ज़िख्ता, भाखरू.."

Caste: सभी

Geography: सभी

"सहादातनगर बाजार में मछलियाँ सस्ती थीं। हम साल भर में कई तरह की मछलियाँ खरीदते थे।"

Caste: सवर्ण, दलित

Geography: सभी

"पासी (एक दलित जाति) मछलियाँ पकड़ते थे, और हम ठाकुर (सवर्ण) उनसे मछलियाँ खरीदते थे।"

Caste: दलित, गरीब मुसलमान

Geography: जल स्त्रोत

"हमारे गाँव के पास झाबर (आर्द्रभूमि) बहुत बड़ा था और यह दो अन्य गाँवों की सीमा से लगता था। हमने मछली पकड़ी, खाई और बेची।"

Caste: दलित, गरीब मुसलमान

Geography: जल स्त्रोत

"हमारे गाँव के पास झाबर (आर्द्रभूमि) बहुत बड़ा था, जिसकी सीमा सात गाँवों से लगती थी। अधिकांश ग्रामीण वहां नियमित रूप से मछलियाँ पकड़ते थे और लगभग हर दिन मछली खाते थे।"

Caste: सवर्ण

Geography: सभी

"मेरे दादाजी 100 साल से अधिक उम्र के हैं और उन्होंने जीवन भर हर दिन मछली खाई है।"

Caste: सभी

Geography: जल स्त्रोत

"अब सभी तालाब ठेके पर हैं - हम वहाँ जाकर मछली नहीं पकड़ सकते। पहले ठेके ग्राम प्रधान द्वारा जारी किए जाते थे। अब वे राजस्व अधिकारियों द्वारा जारी किए जा रहे हैं।"

Caste: सभी

Geography: जल स्त्रोत

"अब जब ज्यादा बारिश नहीं होती है तो तालाब कैसे भरेंगे और हमें मछलियाँ कैसे मिलेंगी?"

Caste: सभी

Geography: जल स्त्रोत

Caste: सभी

Geography: जल स्त्रोत

घटनाक्रम


1950s

1904 में सीतापुर जिले में सिंचाई के लिए 24,821 ताल, तालाब और झीलें थीं। 1959-60 तक यह संख्या गिरकर 12,072 हो गई। नहर नेटवर्क के विस्तार और नलकूपों की शुरूआत के साथ, जल निकायों पर निर्भरता कम हो गई और वे पाट दिए गए, जिससे मछलियों की उपलब्धता कम हो गई। हालाँकि, नहरों में मछलियाँ उपलब्ध थीं।

बाढ़ नियंत्रण के नाम पर, कई निचले जमीनों से पानी निकालने के लिए नालों का निर्माण किया गया। इस बात की महत्व नहीें दिया गया की यह निचली जमीन, जिन्हें झाबर कहते थे, उस पर मछली, जलीय पौधें और पक्षी आदि निर्भर थे।

1980s

जैसे-जैसे भूमि की मांग बढ़ती गई, भूमि जो निचले स्तर पर थी और मौसमी या बारहमासी झाबर बन जाती थी, उसके पट्टे (जोतने का हक) बनने शुरू हो गये। किसान इसका पानी सुखाकर खेती करने लगे। यह पट्टे थोड़े समय के लिए जारी किए गए थे। लेकिन उनके समाप्त होने के बाद भी किसानों ने भूमि पर खेती करना जारी रखा। कुछ पट्टा धारकों ने यह भूमि खाली कर दिया, तो अन्य लोगों ने कब्जा कर लिया और खेती करते रहे। इससे झाबर क्षेत्र में गिरावट आई।

2000s

सिंचाई के विस्तार से भूजल का अत्यधिक दोहन होने से भूजल स्तर में गिरावट आई, जिससे जल निकायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

जबकि पहले समय के तालाब और झील गायब हो गए हैं, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत कई तालाब खोदे गये। इन तालाबों में पानी पहुँगने का सिस्टम सोचे बिना यह तालाब खोदे गये। कुछ तालाब धरातल से ऊपर भी बना दिये गये। नतीजा यह हुआ कि कई जगह तालाब सूखे रहते हैं, और इनका उपयोग मछलियों के प्रजनन के लिए नहीं किया जा सकता है।

लोगों और आकड़ों के अनुसार पिछले कई दशकों से बारिश में बदलाव हुआ है। हल्की और लम्बी बारिश कम हुई और तेज बारिश, जिससे पानी बह जाता है, ज्यादा हुई। इस बदलाव के कारण मछली की आबादी में कमी आई है।

2010s

नहर प्रणाली का विस्तार जारी है। कुछ नए नहर और नालों ने अपने रास्ते में आने वाली झाबर को खत्म कर दिया है। हाल ही में, ऐसे ही एक नाले ने पाँच पंचायतों में फैली एक विशाल झाबर के क्षेत्रफल को घटा दिया है।

Information Cards
Caste:
Geography:
Seasons:
Media Type:

Caste: All

Geography: Canal command area

From: Darley, S.B., 1932. THE DESIGN AND CONSTRUCTION OF THE SARDA CANAL.(INCLUDES PLATES AT BACK OF VOLUME). In Minutes of the Proceedings of the Institution of Civil Engineers (Vol. 233, No. 1932, pp. 140-160). Thomas Telford-ICE Virtual Library

Caste: All

Geography: Water bodies

From: Tripathi, R.P. and Misra, C.B. 1964. Uttar Pradesh District Gazetteers: Sitapur. Lucknow: Department of District Gazetteers

Caste: All

Geography: Water bodies

1972 map from: Varghese, S., Narayanan, S.P., Raj, V.P., Prasad, V.H. and Prasad, S.N., 2007. Analyses of Wetland Habitat Changes and its Impacts on Avifauna in Select Districts of the Indo-Gangetic Plains of Uttar Pradesh, India, Between 1972 and 2004

Caste: All

Geography: Water bodies

2004 map from: Varghese, S., Narayanan, S.P., Raj, V.P., Prasad, V.H. and Prasad, S.N., 2007. Analyses of Wetland Habitat Changes and its Impacts on Avifauna in Select Districts of the Indo-Gangetic Plains of Uttar Pradesh, India, Between 1972 and 2004

Caste: All

Geography: Water bodies

In this video, families describe how much fish they used to eat in the past, and why consumption has gone down today.

Caste: Dalit

Geography: Water bodies

"Fish were abundant in Chaith and Baisakh (the summer months). When they came to the surface, they were knocked out by sticks, collected and cooked."

Caste: Dalit

Geography: Water bodies

"In the monsoon, when water overflowed and filled up in low lying areas, we would catch fish there as well."

Caste: Dalit

Geography: Water bodies

"Fish were available throughout the year in ponds or rivers."

Caste: Dalit

Geography: River banks

"Fish were caught in the nearby river and cooked once every 2-3 days"

Caste: Dalit

Geography: Water bodies

"Fish were plentiful – those who were good at catching fish ate more, others less"

Caste: Dalit

Geography: Water bodies

"We ate"chudhi machhli" – fish cooked and eaten without any grain or accompaniment"

Caste: Dalit, poor Muslims

Geography: Water bodies

"In the month of Poos (January), food was scarce, so we ate fish every day"

Caste: All

Geography: All

"We ate many types of fish - seeng, bham, mangur, bhur, chhanga, rohu, tangna, mudaar, patva, katna, padini, jhikta, bhakru..."

Caste: All

Geography: All

"Fish was cheap in Saadatnagar market. We bought many varieties of fish throughout the year."

Caste: Savarna & Dalit

Geography: All

"The Paasis (a Dalit caste) would fish, and we Thakurs (a dominant warrior caste) would buy fish from them"

Caste: Dalit, poor Muslims

Geography: Water bodies

"The jhabar (wetland) near our village was huge and bordered two other villages. We caught fish, consumed and sold it"

Caste: Dalit, poor Muslims

Geography: Water bodies

"The jhabar (wetland) near our village was huge, bordering seven villages. Most villagers regularly caught fish there and ate fish almost every day"

Caste: Savarna

Geography: All

"My grandfather is over 100 years old and he has eaten fish every day all his life"

Caste: All

Geography: Water bodies

"Now all the ponds are under contract - we can"t go and fish there. First the contracts were issued by the Pradhan (elected village head). Now they are being issued by Revenue officials."

Caste: All

Geography: Water bodies

"Now there isn"t much rain. So how can the ponds fill up and how will we get fish?"

Time Line
1950s

In 1904 there were 24,821 tanks, ponds and jhils which were used for irrigation in Sitapur district. By 1959-60, this number had dropped to 12,072. With the expansion of the canal network and introduction of tube wells, the dependence on water bodies dropped and they were filled up, reducing the availability of fish. However, fish were available in canals

Drainage canals were built on the sides of the main canal to drain off lowlying areas and open them up for cultivation, or for flood control. These wetland ecosystems supported fish, aquatic plants and animals etc.

1980s

As the demand for land grew, lands that were low lying and formed seasonal or perennial wetlands began to be parcelled out. Some of the 'pattas' (titles) were issued for a short period. But after they lapsed, farmers continued to cultivate the lands. Where the Patta holders vacated, others encroached and began cultivating. This led to the decline in wetland area

2000s

The expansion of irrigation led to a drop in groundwater levels, which negatively impacted water bodies

While ponds and tanks from earlier times had disappeared, many ponds were dug under the Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act (MGNREGA). However, these ponds have been dug on whatever land was available, which was not suitable due to location or elevation. In many instances, these ponds remain dry and cannot be used to breed fish

Fish populations seem to have dropped due to a decline in rainfall and changes in rainfall patterns over the past century

2010s

The canal system continues to be expanded, and some of the new channels have drained wetlands along their path. Recently, one such channel has reduced the area of a huge wetland that spans 5 Panchayats