Hunger in our study region was not universal - it was experienced by some people during certain times of the year. Droughts and floods affected the entire population, although those with resources recovered better from these natural disasters. In ordinary times. dominant and intermediate caste families with large landholdings almost never experienced hunger. Historically Avadh was termed the 'Garden of India' and, during famine years, distressed communities would move here in search of food. However, British policies during the colonial era led to the deepening of inequity, and landless families without tenancy rights (predominantly Dalits) were left with low access to resources. This would lead to the depletion of cereal grain stocks (anaaj) by September-October and January-February (Haivat). Deprivation during winter was particularly hard, as work was scarce and the living conditions of poor families left them more vulnerable to the cold. Women suffered deprivation more than men, even in ordinary times. Hunger was not just physical, but also psychological. Poor families could not afford wheat, and felt inferior because of that, even though they consumed healthy and nutritious foods. At times, they got by on collected foods, fish and donated buttermilk. But this was considered less desirable than a meal of rice or roti. In present times the Green Revolution, increased earnings through migration and social security schemes from the government has made wheat and polished rice accessible to all. While people will say 'Abhi bhook nahin hain' - now there is no hunger, longer discusssions reveal that while they are able to fill their stomachs, they cannot afford healthy food now. Nutrition data for Sitapur district is alarming - while stunting rates have dropped, they are among the highest in the country. Anemia is on the rise, as are diabetes and hypertension. We weighed adults during our consumption survey and found high levels of low BMI, indicating undernutrition.





हमारे अध्ययन क्षेत्र में देखा गया है कि भुखमरी सार्वभौमिक नहीं थी, बल्कि सामाजिक कारकों और मौसम के अनुसार आकार लेती थी। अंग्रेजों के समय अवध का नाम ‘गार्डेन ऑफ इंडिया’ था और अकाल के समय दूर प्रांतों से लोग यहाँ खाने की खोज में आकर बस जाते थे। अंग्रेजी सरकार की नीतियों ने अवध में सवर्ण जमींदारों को भूमि निजी तौर पर सौंप कर, अन्य दलित और कमजोर वर्ग की जातियों को भूमिहीन बना दिया। पहले खेत और जंगल झाबर पर निजी हक़ किसी का नहीं था। राजा अलग अलग परिवारों और समुदायों को खेती करने का और जंगल झाबर इस्तेमाल करने का हक़ देते थे। लेकिन अंग्रेजों की नीतियों ने कमज़ोर समुदायों का जमीन पर हक़ ही मिटा दिया। इससे अवध में असमानता बढ़ी, क्योंकि सरकारी ढाँचे ने जमींदारों को मजबूत बना दिया और बाकी सब को उनका गुलाम। यह असमानता आजादी के बाद भी बनी रही, और भुखमरी का मुख्य कारण बनी। भूमि सुधार अधिनियम के अंतर्गत कुछ मध्यम वर्ग के किसानों को ज़मीनें निजी रूप से प्राप्त हुई। लेकिन दलित समुदायों को तब भी नहीं मिल सकी। जिनको 1970 और 1980 के दशक में सरकारी पट्टा मिला भी, वह ज़मीनें उपजाऊ नहीं थी। ऐसी परिस्थिति में भूमिहीन और सीमांत किसान मजदूरी पर ही निर्भर थे। सवर्ण और मध्यम जातियों के जमींदार परिवारों ने कभी भुखमरी नहीं देखी। लेकिन इसके विपरीत, जब हाशिए पर रहने वाले समुदायों के पास अनाज खत्म हो जाता था, और मजदूरी के मौके भी कम हो जाते थे, तब वे भूख के शिकार हो जाते थे। मुख्य रूप से यह दलित परिवार थे। कुंवार (सितम्बर-अक्तूबर) तक रबी का अनाज खत्म हो जाता था और खरीफ की फसल कटने में समय होता था। हैवत (जनवरी-फरवरी) में भी अनाज का भंडार कम हो जाता था, और रबी का अनाज पका नहीं होता था। हैवत में मजदूरी भी कम मिलती थी और ठंड भी सताती थी। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक अभाव का सामना करना पड़ता था। ऐसे समय में गरीब, प्रताड़ित परिवार कई सारे खाद्य पदार्थ बटोर के लाते थे जैसे साग, फल, धरती का फूल या पकड़े हुए जानवर, और छूढ़ी मछली (बिना अनाज के केवल मछली खाना)। एक नज़र से देखा जाए तो यह सब पौष्टिक खाने हैं। लेकिन क्योंकि यह भूखमरी के समय गरीब परिवार इकट्ठा करके खाते थे, और सामाजिक रूप से बटोरने को नीचा दर्जा दिया गया था, इसलिए यह गरीबों का खाना कहलाने लगा। गेहूं की रोटी, सफेद चावल, सफेद चीनी और बाजारी खाने को ऊंचा दर्जा दिया जाने लगा। आज मौसम के अनुसार उपलब्ध पौष्टिक फल, साग, जानवर इत्यादि को युवा पीढ़ी नकारने लगी है। इसी तरह मोटे अनाज, राब के साथ मट्ठा, गुड़ जैसी कई चीजें को खाते हुए दलित युवा पीढ़ी को हीन भावना महसूस होती है। हरित क्रांति से पहले गरीब परिवार गेहूं नहीं खरीद पाते थे, इसलिए वे अपेक्षित महसूस करते थे। हरित क्रांति से गेहूं और चावल का उत्पादन बढ़ा और राशन की दुकानों से सस्ता अनाज प्राप्त होने से सब को अनाज मिलने लगा। पिछले 15-20 सालों में शहर की तरफ पलायन करके आमदनी भी बढ़ी है, जिससे गरीब परिवारों में अनाज की दिक्कत खत्म हो गयी है। लोग कहते हैं “अब भूख नहीं है” पर विस्तार से चर्चा करने पर सवाल उठता है की पोषण भी नहीं मिल रहा है। सीतापुर के पोषण के आँकड़े खतरनाक हैं। ‘स्टंटिंग’ की तादात कम हुई है लेकिन देश में फिर भी अव्वल नम्बर पर है सीतापुर इसमें। लोग खून की कमी (अनीमिया), शुगर की बीमारी और बढ़े हुए ब्लड प्रेशर के शिकार हो रहे हैं। 2017 के हमारे सर्वे के दौरान वयस्कों की बी॰एम॰आइ॰ जाँच में अधिकतर लोग कुपोषित पाए गए।





जानकारी कार्ड


जाति:
क्षेत्र/मिट्टी:
मौसम:


Caste: दलित

Geography: सभी

कठिन समय हैवत (पूस-माघ, दिसम्बर-जनवरी), क्वांर (सितम्बर-अक्टूबर), भादों (अगस्त-सितम्बर) के दौरान था

Caste: दलित

Geography: सभी

ड्यौढ़ा में अनाज खरीदने के लिए उधार लेते थे - एक रुपया उधार लिया तो डेढ़ रुपये लौटाने पड़ते थे। ड्यौढ़ा से लोग परेशान थे क्योंकि ब्याज बहुत जल्दी जुड़ जाता था।'

Caste: दलित

Geography: सभी

लोग अनाज के लिए दूसरे का काम करते थे।

Caste: पिछङी जाति

Geography: सभी

हम अपने गेहूं की सुरक्षा के लिए रात में गश्त लगाते थे। चोर इसे चुराने की कोशिश करते थे।

Caste: सभी

Geography: सभी

70-80 के दशक में दो अकाल पड़े। फिर लढिया को उबाल कर खाते थे। लोगों ने खाने का सामान खरीदने के लिए बहुत सी चीज़ें बेचीं।

Caste: दलित

Geography: सभी

हैंवत (दिसंबर-फरवरी) में सबसे कम अनाज उपलब्ध होता था। मजदूर वर्ग के लिए सबसे कठिन था। काम मिलना मुश्किल था, गर्म कपड़े कम थे, और उत्पीड़न व्यापक था।

Caste: दलित

Geography: सभी

फसल की पैदावार कम थी, लोगों के पास पैसा कम था और सेवाओं तक पहुंच कम थी।

Caste: दलित

Geography: सभी

गन्ने के रस और गुड़ से लोगों को मदद मिली।

Caste: दलित

Geography: सभी

उबले हुए बथुआ को रोटी बनाने के लिए ज्वार में मिलाया जाता था।

Caste: सभी

Geography: सभी

सूखे के दौरान, उबला हुआ सेमरा का छाल (सेमल पेड़ की छाल) खाया जाता था।

Caste: दलित

Geography: सभी

बेल या बथुआ उबाल कर खाया जाता था।

Caste: दलित

Geography: सभी

कभी-कभी 2-3 दिन खाना नहीं मिलता।

Caste: दलित

Geography: सभी

धार्मिक समारोहों में वितरित होने वाले भोजन को हम लेकर खाते थे।

Caste: दलित

Geography: सभी

लोग काम की तलाश में बाहर जाते थे, लेकिन काम भी मुश्किल से मिलता था।

Caste: दलित

Geography: सभी

कभी-कभी सड़कें बनती थीं तो लोगों को काम मिल जाता था।

Caste: दलित

Geography: सभी

टूटे चावल या चावल के टुकड़े बाजार में बिकते थे।

Caste: दलित

Geography: सभी

मेहमान हैंवत के दौरान आते थे और उनके लिए खाना नहीं होता था।

Caste: दलित

Geography: सभी

जब मैं यहां नई दुल्हन बनकर आई तो मेरे ससुराल वाले मेरे साथ सख्त थे। कभी-कभी मैं पूरे दिन बाग से केवल अमरूद ही खाती थी।'

Caste: दलित

Geography: सभी

एक साल, जौ की फसल विफल हो गई, इसलिए बाजरे की बाली को पीसकर आटे के रूप में इस्तेमाल किया गया था।

Caste: सभी

Geography: सभी

होली परिक्रमा के दौरान तीर्थयात्रियों को भोजन कराने के लिए पैसा उधार लेते थे। '

Caste: दलित

Geography: सभी

एक बार, ऋण चुकाने के लिए, मुझे ऋणदाता के खेत में 3 साल तक काम करना पड़ा'

Caste: दलित

Geography: सभी

कई साल पहले नदी के पास एक बंधा बन रहा था। पहले तीन दिन ड्योढ़ा पर आटा उधार लेकर काम चलाया। चौथे दिन मजदूरी में 25-30 किलो चावल मिला। थोड़ी राहत मिली।

Caste: दलित

Geography: सभी

कभी-कभी हम सिर्फ पानी में नमक घोलकर पीते थे।'

Caste: दलित

Geography: सभी

हम गेहूं के खेतों से अकरा की दाल बटोर लेते थे।

Caste: दलित

Geography: सभी

हम बासी खाना खाते थे।'

Caste: दलित

Geography: सभी

हैवत में हम मट्ठा में राब मिलाकर पीते थे और किसी तरह गुजारा करते थे।

Caste: दलित

Geography: सभी

जब हमारे पास अनाज खत्म हो जाता, तो हम काम के लिये केवल सहादातनगर जा पाते थे। अब जब हमारे पास अनाज खत्म हो जाए तो हम दिल्ली भी जा सकते हैं।

Caste: दलित

Geography: सभी

हमारे गांव में भूखमरी थी। लोगों ने पेट भरने के लिये सिर्फ साग खाया और पानी पिया।'

Caste: दलित

Geography: सभी

हम महिलाएं पटोई पीते थे (गन्ने के रस की परत)।

Caste: दलित, पिछड़ा

Geography: सभी

जब लोगों ने घर और गांव के बाहर काम करना शुरू किया, तो भूखमरी कम हो गई। मनरेगा के बाद स्थिति में और सुधार हुआ।

Caste: दलित

Geography: सभी

पलायन बढ़ा, और इससे आमदनी में सुधार हुआ। पिछले 2 सालों में इस गांव के करीब 6-7 परिवार पलायन कर चुके हैं।'

Caste: दलित

Geography: सभी

2016 से राशन दिया जा रहा है, लेकिन कुछ जरूरतमंद परिवारों के पास अभी भी राशन कार्ड नहीं हैं।

Caste: सवर्ण

Geography: सभी

हम ड्यौढ़ा में पैसा उधार लेते थे।'

Caste: दलित

Geography: सभी

अब, अगर हम कड़ी मेहनत करते हैं तो अपने पेट भरने की जरूरतों को पूरा कर पाते हैं।'

Caste: दलित

Geography: सभी

हमने मूंगफली के साथ हैवत गुजारा है।

Caste: दलित

Geography: सभी

जब खाने के लिए और कुछ नहीं होता तो हम अपनी भूख बेर से मिटाते थे।

Caste: दलित

Geography: सभी

तब भूखमरी थी, अब भी भूख है।

Caste: दलित, गरीब मुसलमान

Geography: जल स्त्रोत

पूस (जनवरी-फरवरी) के महीने में खाना कम होता था, इसलिए हम रोज मछली खाते थे

Caste: दलित/पिछङी जाति

Geography: जल स्त्रोत

1890 के दशक में, जमींदार इस गांव को बसाने और अपने खेतों में काम करने के लिए 3 परिवार को लाये थे - हम सभी उनके वंशज हैं। उन्होंने हमें नदी के किनारे कुछ जमीन दी, लेकिन हमारी खरीफ की फसल अक्सर बह जाती थी। अगर कोई साँवा या काकुन या मकई बच जाती था, तो उसे काटा जाता था। हम झरुआ का दाना भी इकट्ठा करते थे और इससे भात बनाते थे।

Caste: दलित/पिछङी जाति

Geography: सभी

यदि आप एक बड़े किसान की जमीन पर काम करते थे, तो आपके पास अपनी जमीन की देखभाल करने के लिए मुश्किल से ही समय होता था। हम समय पर बुआई नहीं कर पाते थे, न ही समय पर निराई या फसल काट पाते थे।

Caste: सभी

Geography: सभी

क्वार (सितंबर-अक्टूबर) में, अगली फसल की कटाई से पहले हमारे अनाज खत्म हो जाते थे। तब हम महिलाएँ कटाई से पहले, पकी सावां या काकुन की बालियों की तलाश में खेतों में जाते थे।

घटनाक्रम


1947 से पहले

ब्रिटिश शासन के दौरान, जमीन और लोगों के आवागमन पर कठोर प्रतिबन्ध थे। साथ ही अकाल या खराब मौसम के समय जिन प्राकृतिक संसाधनों पर लोग निर्भर होते थे, ब्रिटिश शासको के लूट की वजह से उनके पहुँच से बाहर हो गया। पश्चिमी अवध में अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम नुकसान हुआ, हालांकि बेमौसम बारिश और सर्दियों की बारिश में कमी होने के कारण 1896-97 में भयंकर अकाल पड़ा। कभी-कभी बाढ़ ने भी संकट पैदा किया, और 1914 और 1918 में भी अकाल का दौर आया। 1918 में इन्फ्लूएंजा महामारी से कठिन समय आया।

1950s

जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम (ZALR) के पारित होने और इसके कार्यान्वयन के कारण जमींदारों से जोतकारों को भूमि का हस्तांतरण हुआ। इस अवधि के दौरान प्रमुख जातियों, मध्यम जातियों (मौर्य, यादव आदि) और कुछ मजबूत दलित किसानों को भूमि का स्वामित्व मिला।

1957-63

सात वर्षों की इस अवधि के दौरान, इस क्षेत्र में हर साल बाढ़ आया, और फसलों का लगातार नुकसान हुआ। लोगों को कठिन जीवन का सामना करना पड़ा, जिससे क्षेत्र से पलायन हुआ। इस काल में कठिनाइयाँ इतनी अधिक रही कि वह यहा के लोक गीतों और कविताओं में भी दर्शाई गई।

1970s

गरीबी हटाओ' अभियान के करण कई भूमिहीन परिवारों को 'पट्टा' या भूमि मिला। यह भूमि आमतौर पर गाँव में सबसे कम उपजाऊ भूमि थी, जैसे कि ऊँची-नीची, बलूई या निचली भूमि। फिर भी, इस भूमि ने इन हाशिए के परिवारों को स्वाभिमान दिया और उन्हें पहली बार संपत्ति का अधिकार प्रदान किया।

1979-80

1989 के सीतापुर अनुपूरक गजटियर के अनुसार, 1979-80 के भीषण सूखे ने मिश्रिख तहसील में 1,37,492 हेक्टेयर भूमि को प्रभावित किया। गरीब परिवार गंभीर संकट से गुजरे। इस दोरान राहत प्रदान करने के लिए, कई सार्वजनिक कार्य शुरू किए गए।

2006

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के लागू होने से किसान-मजदूरों के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव हुए। दैनिक मजदूरी बढ़ी और कई परिवारों को पलायन से बचने का विकल्प भी मिला।

2014

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश की लगभग 80% ग्रामीण आबादी को रियायती खाद्यान्न मिलना तय हुआ। इसने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के दायरे का विस्तार किया और ग्रामीण गरीब परिवारों की खाद्य सुरक्षा में सुधार किया।

Information Cards
Caste:
Geography:
Seasons:
Media Type:

Caste: Dalit

Geography: All

"The lean times were during Jharautha (Phagun, Feb-March), Kunwar (Aug-Sept), Bhadon (July-August)"

Caste: Dalit

Geography: All

"Money was borrowed at Dhevda to buy grain - if we borrowed one rupee, we had to return one-and-a-half rupees. Dhevda was horrible as interest would add up very quickly"

Caste: Dalit

Geography: All

"People would work for others for grain"

Caste: OBC

Geography: All

"We would maintain patrols at night to protect our wheat. Thieves would try to steal it"

Caste: Dalit

Geography: All

"The poor would grind Bathua seeds and use the flour to make rotis. Or they would make ghaas ki Roti (rotis made from brown top millet)"

Caste: All

Geography: All

"Two famines were experienced in the 70s-80s. Then ladhiya was boiled and eaten. People sold a lot of things to get by"

Caste: Dalit

Geography: All

"The months of Pus and Phagun (Jan-Feb, Feb-March) were the times of least food availability"

Caste: Dalit

Geography: All

"Haivat (Dec-Jan) was toughest for the labouring class. Work was hard to get, warm clothes were insufficient, and oppression was widespread"

Caste: Dalit

Geography: All

"Crop yields were low, people had very little money or access to services"

Caste: Dalit

Geography: All

"Sugarcane juice and Gur helped people get by"

Caste: Dalit

Geography: All

"Boiled Bathua was mixed with Jowar to make roti"

Caste: All

Geography: All

"During drought, boiled semra ka chaal (bark of the semra tree) was consumed"

Caste: Dalit

Geography: All

"Bel or Bathua was boiled and eaten"

Caste: Dalit

Geography: All

"Sometimes, there was no food for 2-3 days"

Caste: Dalit

Geography: All

"Foods was distributed at poojas (religious ceremonies)"

Caste: Dalit

Geography: All

"People would go out to find work, but even work was hard to get"

Caste: Dalit

Geography: All

"Sometimes, roads were being built and people would get work"

Caste: Dalit

Geography: All

"Broken rice or rice pieces were sold in the market"

Caste: Dalit

Geography: All

Guests would come during Haivat and there was no food for them

Caste: Dalit

Geography: All

"When I came as a new bride here, my in-laws were harsh with me. Sometimes I would only eat Amrud from the orchard the entire day"

Caste: Dalit

Geography: All

One year, the barley harvest failed, so the bajra pannicles were ground and used as flour"

Caste: All

Geography: All

"During Holi Parikrama, the pilgrims had to be fed. Money would be borrowed for this"

Caste: Dalit

Geography: All

"Once, to pay off a loan, I had to work for 3 years in the lender's field"

Caste: Dalit

Geography: All

"Many years ago, an embankment was being built near the river. 25-30 kg of rice was given on the fourth day. Till then, people borrowed Atta on Dhevda and worked"

Caste: Dalit

Geography: All

"Sometimes all we had was salt dissolved in water"

Caste: Dalit

Geography: All

"We ate semra ka chhaal and fruits"

Caste: Dalit

Geography: All

"We harvested akra ki Dal from wheat fields"

Caste: Dalit

Geography: All

"Then, Atta and Dal would be stolen"

Caste: Dalit

Geography: All

"Then we ate Baasi food"

Caste: Dalit

Geography: All

"In Haivat, we drank Sharbat and somehow managed"

Caste: Dalit

Geography: All

"Then, when we ran out of grain, we could only go to Saadatnagar. Now, when we run out of grain, we can even go to Delhi"

Caste: Dalit

Geography: All

"In our village, there was hunger. People ate Saag and drank water."

Caste: Dalit

Geography: All

"Us women would drink ganne ki patoi (the dust on top of sugarcane juice)"

Caste: Dalit

Geography: All

"When women began to work outside the house, hunger went down. They came out to take up domestic work and then MGNREGA"

Caste: Dalit

Geography: All

"Migration has increased, and that has improved incomes. Some 6-7 families in this village have left over the past 2 years"

Caste: Dalit

Geography: All

"Since 2016, ration is provided, but some needy families still don"t have ration cards"

Caste: Savarna

Geography: All

"We would lend money at dhevda"

Caste: Dalit

Geography: All

"Now, if we work hard we can meet our food needs"

Caste: Dalit

Geography: All

"Then we passed Haivat with groundnuts"

Caste: Dalit

Geography: All

"We would fill our stomachs with Ber when there was nothing else to eat"

Caste: Dalit

Geography: All

"There was hunger then, there is hunger now"

Caste: Dalit, poor Muslims

Geography: Water bodies

"In the month of Poos (Jan-Feb), food was scarce, so we ate fish every day"

Caste: Dalit, OBC

Geography: Water bodies

"The Zamindar brought in 3 families in the late 1800s to settle this village and work on his fields - we are all their descendants. He gave us some land by the river, but our Kharif crop would often be washed away. If any Saanwa or Kakun or makai survived, it would be harvested. We would also collect jarua ka daana (browntop millet) and pound it to make rice."

Caste: Dalit, OBC

Geography: All

"If you worked on a big farmer's land, you barely had time to take care of your own land. We could not sow on time, weed or harvest on time"

Caste: All

Geography: All

"In Kunwaar (Sep-Oct), our food grain stocks would run out before the next crop could be harvested. Then we women would go into the fields, looking for ripe pannicles to harvest for rice."

Time Line
Before 1947

Under British rule, the famines that Indians faced were exacerbated due to colonial restrictions on land use and migration, as well as the plunder of natural resources which communities depended on during lean times. Western Avadh suffered less than other regions, although unseasonal rains and the failure of winter showers led to a severe famine in 1896-97. Floods caused distress in some years, and famines were also experienced in 1914 and 1918 (along with the influenza pandemic).

1950s

The passage of the Zamindari Abolition and Land Reforms Act (ZALR) and its implementation led to the transfer of land from zamindars to the cultivators. Farmers from dominant castes, intermediate castes (Maurya, Yadav etc.) and some better-off Dalits become landowners during this period

1957-63

During a period of seven years, the region experienced floods every monsoon, and crops were regularly damaged. People suffered from scarcity, and distress out-migration occured. Poems were composed about the hardships in this period.

1970s

The 'Garibi Hatao' or 'eliminate poverty' campaign led to many landless families receiving 'pattas' or titles to land. This land was usually the least fertlie land in the village, such as undulating, sandy or low-lying land. Yet, this land gave self-respect to these marginalised families and provided them assets for the first time

1979-80

The severe drought of 1979-80 affected 1,37,492 hectares in Mishrikh tahsil, according to the Sitapur Supplementary Gazetteer of 1989. Poor families experienced severe distress and, to provide relief, many public works were initiated.

2006

The launch of the Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act made a significant difference in the lives of farmer-labourers as it raised daily wages and gave a viable alternative to migration for many families

2014

The implementation of the National Food Security Act resulted in almost 80% of the rural population of Uttar Pradesh becoming eligible to receive subsidised food grains. This expanded the ambit of the Public Distribution System (PDS) and improved the food security of the rural poor